Aman Mishra

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रुद्र : भाग-७

              शहर के जे. बी. रोड वाले इलाके में अपहरण के मामले बढ़ते ही जा रहे हैं। पुलिस को भी अब तक इस बारे में कोई सुराग नहीं मिल सका है। पुलिस मुख्यालय के बाहर मीडिया और अखबार वालों की भीड़ लगी हुई थी। सीनियर इंस्पेक्टर विकास और एसपी विराज नीचे मीडिया वालों को संभाल रहे थे, और सीनियर इंस्पेक्टर अभय और एसीपी रुद्र कमिश्नर ऑफिस में बैठे हुए थे।
  
              "तीन महीनों से लगातार उस इलाके में अपहरण की घटनाएँ सामने आ रही हैं, लेकिन अब तक हमें कोई सुराग नहीं मिला है।" कमिश्नर खन्ना ने कहा।

              "सर हमने वारदात वाली जगह को अच्छे से खंगाल लिया है। कहीं ऐसी कोई चीज नहीं मिली जिससे हम तहकीकात आगे बढ़ा सकें।" अभय ने निराशा भरे स्वर में कहा।

              "और सर हमने गायब हुए लोगों की पूरी जानकारी निकाली है। इनमें कोई भी ऐसी बात सामने नहीं आयी है, जो इन लोगों में कॉमन हो।" रुद्र ने कहा।
   
              "मीडिया पीछे पड़ी है। कोई ये क्यों नहीं समझता कि हम पुलिस वाले कोई जादूगर नहीं हैं, कि चुटकी बजाते ही अपराधी सामने आ जाएगा।" कमिश्नर साहब ने थोड़े क्रोध में कहा।

              "कोशिश जारी है सर। मुझे उम्मीद है हम जल्द से जल्द गुनाहगारों को पकड़ लेंगे।" अभय ने आत्मविश्वास से कहा।

              "खैर, तुम्हारा अगला कदम क्या है?" कमिश्नर साहब ने रुद्र और अभय को बारी-बारी से देखते हुए कहा।

              "सर अब तक तो गायब हुए लोगों में कोई समानता नहीं मिली है। इसलिए अब हम इन सभी के घर वालों से और इनके साथ काम करने वालों से कुछ सवाल-जवाब करेंगे। मुझे उम्मीद है, कोई न कोई समानता तो होगी ही इन लोगों में।" रुद्र ने दृढ़ता पूर्वक कहा।

               कमिश्नर साहब ने इसपर कोई टिप्पणी नहीं की, बस हाँ में सर हिला दिया। कुछ देर बाद रुद्र और अभय वहाँ से निकलकर मुख्य दरवाजे की ओर मुड़ गए, जहाँ से काफी शोर सुनाई दे रहा था।

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              "देखिए, पुलिस अपना काम कर रही है। जैसे ही कुछ पता चलेगा, हम खुद एक सभा आयोजित करेंगे और आप लोगों के सारे सवालों के जवाब देंगे। तब तक आप सभी प्लीज यहाँ से जाइए और हमें हमारा काम करने दीजिए।" एसपी विराज ने कुछ मीडिया कर्मियों को पुलिस मुख्यालय के अंदर आने से रोकते हुए कहा।

           "सर हम भी यही जानना चाहते हैं, की कब पता चलेगा इन अपहरणों का राज? जनता जानना चाहती है की पुलिस आखिर कर क्या रही है?" एक लड़की ने विराज की ओर देखते हुए तेज आवाज में पूछा।

           काफी देर से मीडिया वालों की कड़वी बातें सुनकर, विराज जैसा शांत स्वभाव वाला व्यक्ति भी अब गुस्से से भर गया था। विराज अपना हाथ घुमाकर अपनी बंदूक तक ले ही जा रहा था, कि उसे विकास ने रोक लिया और शांत रहने को कहा।

          "पुलिस अपना काम अच्छी तरह से जानती है। आप लोगों की तरह हम अपना काम भूले नहीं हैं।" पीछे से जोरदार आवाज में किसी ने कहा।

           विराज और विकास के साथ-साथ सभी की नजरें उस ओर चली गयीं। सामने से रुद्र आ रहा था और उसके थोड़ा पीछे अभय था।

           "वो तो सभी देख रहे हैं, मिस्टर एसीपी। अगर पुलिस इतना अच्छे से काम कर रही है, तो अब तक अपराधी आजाद क्यों है।" एक अधेड़ उम्र के व्यक्ति ने तंज कसते हुए कहा।
 
          "और क्या कहा आपने, हम अपना काम भूल गए हैं?" एक चश्मा लगाए छोटे कद के रिपोर्टर ने पूछा।

         "देखिए, कोई भी गुनाहगार हमारे लिए गुनाह करने के बाद अपना नाम और पता छोड़ कर नहीं जाता..... की मैं यहाँ मिलूँगा, आओ और मुझे प्यार से पकड़कर जेल में डाल दो। और जहाँ तक आपके काम की बात है, तो हाँ, आप सभी अपना काम भूल गए हैं। मीडिया का काम खबरों में मिर्च-मसाला लगाकर चैनल की टीआरपी बढ़ाना या फिर बात-बात पर पुलिस का मजाक बनाना नहीं है। इस वक्त आपका काम है, कि आप जनता से दरख्वास्त करें की कोई भी किसी के भी बुलाने पर किसी अनजान जगह पर ना जाए। लेकिन आपको तो बात-बात पर पुलिस वालों को काटने का शौक है।" रुद्र ने गुस्से से कहा।

           " और हाँ, इतनी देर से ये दोनों ऑफिसर्स आप लोगों को समझा रहे थे। एसीपी साहब ने भी अभी-अभी अच्छा-खासा भाषण दिया है। अब आप लोग कृपया कर यहाँ से जाइए, वरना हमें सख्त कदम उठाने पड़ेंगे।" अभय ने आगे बढ़ते हुए कहा।

           "सर आप मीडिया को धमका नहीं सकते हैं।" उसी लड़की ने चिल्लाते हुए कहा।

           "धमकी देने जैसी गिरी हुई हरकत करना हमें भी पसंद नहीं है।" कहते हुए रुद्र ने अपनी गन निकाल ली।

           सभी थोड़े चौंक गए। अभय, विराज और विकास को भी डर था कि कहीं रुद्र सच में गुस्से में कुछ गलत न कर दे। वहीं रुद्र ने हवा में एक गोली भी चला दी। रुद्र की इस हरकत का सकारात्मक असर दिखाई पड़ा। कुछ मीडिया कर्मी उल्टे पाँव भाग गए तो कुछ 'वापस आएँगे' जैसी बातें कर अपने डर को छुपाते हुए चले गए।

           "यार कंट्रोल कर, इतना गुस्सा भी ठीक नहीं है।" विराज ने रुद्र के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा।

           "अरे भाई, गुस्सा नहीं कर रहा था। ऐसा नहीं करता तो हम सब यहीं चौकीदारी कर रहे होते। वो सब छोड़ो, सबसे पहले गायब हुए लोगों के घर और ऑफिस में पूछताछ करने के लिए अलग-अलग टीम बनाओ और सभी को काम पर लगा दो।" रुद्र ने कहा।

           "ठीक है। मैं जाकर ऑफिसर्स को बताता हूँ। चल अभय।" विकास ने अभय को खींचते हुए कहा।

           "अच्छा विराज, मैं अभी साइबर सेल डिपार्टमेंट जा रहा हूँ। उन लोगों को जो फर्जी मेल और फोन आए थे, उनके बारे पता करने। तू भी चल रहा है या कुछ काम है यहाँ पर?" रुद्र ने बाहर निकलते हुए कहा।

          "नहीं, चल मैं भी चलता हूँ।" कहते हुए विकास भी रुद्र के साथ निकल गया और दोनों गाड़ी में बैठ कर मुख्यालय परिसर से बाहर निकल गए।

    




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                शहर से दूर, घने जंगलों में घोर सन्नाटा फैला हुआ था। दोपहर की तेज धूप पेड़ों से छनकर आ रही थी। जंगल के इस सन्नाटे के बीच अचानक से किसी के चलने की आवाजें आने लगी। दो लोग धीरे-धीरे जंगल में अंदर की ओर बढ़ रहे थे। दोनों ने धोती पहनी हुई थी और शरीर के ऊपरी भाग पर कपड़े के नाम पर सिर्फ गमछे लिए हुए थे, और उनके सर पर पगड़ी थी। दोनों साँवले रंग के मध्यम कद के थे। दोनों के हाथों में कुल्हाड़ी और कुछ बोरियाँ थीं।

              "ऐ भोला! जल्दी कर। आज यहाँ से अच्छा-खासा माल उठा लेंगे और कल दूसरे शहर जाकर बेच डालेंगे।" आगे चल रहे आदमी ने कहा।

              "आ रहा हूँ रे श्यामू। लेकिन तुझे पक्का पता है ना, कोई अपन को पकड़ेगा तो नहीं यहाँ?" पीछे चल रहे भोला नामक आदमी ने थोड़ा फुसफुसाते हुए कहा।

             "नहीं रे यार। इतना अंदर कोई नहीं आता। अपन फटाफट लकड़ी काट के बोरियों में भर लेंगे।" श्यामू ने आगे बढ़ते हुए कहा।

             अचानक ही उन दोनों को किसी तेज दुर्गंध का आभास हुआ। दोनों ने अपनी नाक पर हाथ रख लिया।

              "अबे! ये इतनी बेकार बदबू कहाँ से आ रही है।" भोला ने बुरा से मुँह बनाते हुए कहा।

              दोनों धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगे। दुर्गंध और ज्यादा तीव्र होने लगी।

             "लगता है एक साथ कई सारे जानवर सड़ गए हैं। वो देख, वहाँ, उस पत्तियों के ढेर के पास से बदबू आ रही है।" कहते हुए श्यामू उस ओर बढ़ गया।

             भोला भी धीरे-धीरे श्यामू के पीछे चलने लगा। दोनों ने अपना गमछा कंधे से उतार कर उसे अपनी नाक पर बांध लिया। अब उस दुर्गंध को सहन करना उन दोनों के लिए बहुत ज्यादा मुश्किल हो रहा था। दोनों ने जैसे-तैसे अपनी कुल्हाड़ियों से धीरे-धीरे सूखी हुई पत्तियों और लकड़ियों को हटाया। सामने का वीभत्स दृश्य देखकर दोनों की साँस फूलने लगी। श्यामू और भोला बुरी तरह से काँपने लगे और कुछ कदम पीछे हो गए। उनके सामने तीन इंसानों की लाशें पड़ी हुई थीं, जो सड़ने लगी थीं। कपड़ों से पता चल रहा था कि उनमें दो आदमियों की और एक औरत की लाश थी।

              "यार!......य....ये त....तो लाशें हैं। अ..... अब क्या करें?" भोला ने काँपती हुई आवाज में कहा।

             "ए....एक काम करते हैं। पुलिस को खबर कर देते हैं।" श्यामू ने कहा।

             "अबे लेकिन....प....पुलिस हमसे पूछेगी की....ह....हम यहाँ क्या करने आए थे, तब?" भोला ने डरते हुए कहा।

             "और अगर किसी ने हमें यहाँ से भागते हुए देख लिया, तो सारा इल्जाम हमारे सर पर आ जाएगा। तो रुक, मैं अभी पुलिस को फोन करता हूँ।" कहते हुए श्यामू ने अपनी पगड़ी उतारी और उसके अंदर से अपना फोन निकालकर, थोड़ा किनारे जाकर पुलिस को सब बात दिया।

           कुछ देर बाद वहाँ कुछ पुलिस वाले आ गए। उन्होंने लाशों की और आसपास की जगह की तस्वीरें ले ली। कुछ पुलिस वाले आसापास की तलाशी ली रहे थे। कुछ देर बाद उन लाशों को एम्बुलेंस में डालकर जाँच के लिए भेज दिया गया। भोला और श्यामू एक कोने में सहमे से खड़े थे।
      
            सब-इंस्पेक्टर विजय उन दोनों के पास गए और कहा, "तो तुम लोगों ने इन लाशों को देखा है। यहाँ आसपास किसी और को भी देखा था क्या?"

            "नहीं साहब। हमने किसी को नहीं देखा। हम तो बस बदबू का पीछा करते हुए आ गए यहाँ।" भोला ने हाथ जोड़कर कहा।

            "ठीक है। वैसे तुम दोनों यहाँ इस जंगल में इतना अंदर क्या करने आए थे।" विजय ने उन लोगों की कुल्हाड़ियों पर नजर डालते हुए कहा।

            "साहब व......वो.. कुछ नहीं। ह....हम तो बस घु....घूमने आए थे।" श्यामू ने हकलाते हुए कहा।

            "अच्छा! देखो, सच बताओ वरना......" कहते हुए विजय ने अपनी गन श्यामू की ओर तान दी।

            "गोली मत मारना साहब। हम सब बताते हैं। हम दोनों यहाँ से लकड़ियाँ और जानवरों की तस्करी करते हैं। माफ कर दो साहब। हम फिर ये काम नहीं करेंगे।" कहते हुए भोला और श्यामू, विजय के पैर पकड़कर रोने लगे।

              "हवलदार, इन दोनों को जीप में डालो।" विजय ने भोला और श्यामू की ओर इशारा करते हुए कहा।

               वे दोनों बुरी तरह रोने लगे। हवलदार ने उन्हें पकड़कर जीप में डाल दिया। कुछ देर बाद पुलिस वहाँ से चली गई।








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               रुद्र ने गाड़ी सीधा मुंबई पुलिस के साइबर विंग के सामने रोक दी। वो एक तीन मंजिला इमारत थी। आगे की ओर पूरी बिल्डिंग काँच की थी और ऊपर बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा था, 'साइबर सेल, मुंबई'।
               रुद्र और विराज गाड़ी से नीचे उतरे और सीधा अंदर चले गए। दरवाजे पर घड़े हवलदार ने उन दोनों को सल्यूट किया। रुद्र और विराज सीढ़ियों से दूसरी मंजिल पर आए और दाहिनी तरफ स्थित एक कमरे के अंदर चले गए। वहाँ कई सारे पुलिस ऑफिसर्स कंप्यूटर के सामने बैठे थे और अपना-अपना काम कर रहे थे।
                "हेलो सर, मैं मोहन त्रिपाठी, साइबर सेल का चीफ।" काले रंग का सूट पहने एक व्यक्ति ने रुद्र और विराज की ओर बढ़ते हुए कहा।
                 उसके चेहरे पर एक मुस्कान थी और वह लगभग ३०-३५ साल का रहा होगा।

                "हेलो मोहन, इनसे मिलो, ये हैं हमारे एसीपी रुद्र रघुवंशी।" विराज ने रुद्र की तरफ इशारा करते हुए कहा।

               "इन्हें तो पूरा डिपार्टमेंट अच्छे से जनता है।" मोहन ने रुद्र से हाथ मिलाते हुए कहा।

               "धन्यवाद मोहन। उन लोगों को जो मेल और फोन आए थे उसका कुछ पता चला?" रुद्र ने पूछा।

               "सर हमने कोशिश की मगर वो सब एक प्राइवेट नेटवर्क से भेजे गए थे। इस वजह से हमें भेजने वाले के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली है। हमने कल एक विशेषज्ञ को बुलाया है। उसके आने के बाद ही कुछ बता सकते हैं हम।" मोहन ने रुद्र और विराज को बैठने का इशारा करते हुए कहा।

              "ये एक्सपर्ट इतना जल्दी सब कुछ कैसे पता कर लेते हैं?" विराज ने भोला सा चेहरा बनाते हुए कहा।

              मोहन के कुछ बोलने के पहले ही रुद्र ने कहा, "वो सबसे पहले किस इंसान को कितने बजे मेल आया ये देखेगा। उसके बाद वो ये पता करेगा कि ठीक उसी समय शहर में और शहर के बाहरी इलाके के आसपास कितने ऐसे लोग थे, जो मेल सुविधाओं का इस्तेमाल कर रहे थे, ऐसे स्थान जहाँ से उस वक्त मेल सिग्नल मिल रहे थे। ऐसा करने से हमारे पास कुल तेरह लोगों की तेरह लिस्ट आ जाएँगी। हमें बस उनमें से कॉमन जगह का पता लगाना होगा।"

             "सर आपको इन सबकी इतनी सटीक जानकारी कैसे है?" मोहन ने रुद्र की बातों से प्रभावित होकर कहा।

             "क्योंकि ये एक आईटी इंजीनियर हैं।" विराज ने तपाक से कहा।

             मोहन ने मुस्कुराते हुए रुद्र की ओर देखा जो सहमति में सिर हिला रहा था।

             "तो फिर साइबर सेल खुद ये क्यों नहीं कर लेता?" विराज ने थोड़ी नाराजगी से कहा।

             "क्योंकि इस काम के लिए कुछ ऐसे सिस्टम बनाए गए हैं जो कि सिर्फ संगणक विशेषज्ञ, यानी की कंप्यूटर एक्सपर्ट या हैकर को ही मिलते हैं।" मोहन ने शालीनता से उत्तर दिया।

             कोई कुछ कहता इसके पहले ही रुद्र के फोन की घंटी बजी। रुद्र ने जेब से फोन निकाला और कहा, "हाँ, बोलो विजय, कुछ काम था क्या?"

            कुछ देर तक रुद्र दूसरी ओर से विजय की बातें सुनता रहा। उसके माथे पर चिंता की लकीरों को साफ देखा जा सकता था। रुद्र ने थोड़ी देर बाद बिना कुछ कहे ही फोन काट दिया।

           "विराज हमें अभी चलना होगा। एक प्रॉब्लम हो गयी है।" रुद्र ने कुर्सी से उठते हुए कहा।

          "पर हुआ क्या?" विराज भी खड़ा होते हुए बोला।

          "आज सुबह जंगल में तीन लाशें मिली हैं, वो भी बहुत ही बुरी हालत में। और वो लाशें उन्ही गायब हुए लोगों में से दो आदमियों और एक औरत की है।" रुद्र ने जल्दी-जल्दी सारी बात कह डाली।

         "क्या!! चल चलते हैं। और मोहन तुम जल्द से जल्द हमें जानकारी निकाल कर दो। हम और लोगों के मरने का इंतजार नहीं कर सकते हैं।" विराज ने दरवाजे की ओर जाते हुए कहा।
 
        रुद्र और विराज भागते हुए बाहर आए और गाड़ी में बैठ कर निकल गए।










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               कैसे पता चलेगा अपराधी का? क्या रुद्र और उसके दोस्त बचे हुए १० लोगों को सही सलामत बचा पाएगी? जानने के लिए अगले भाग का इंतजार करें।









नोट: यह भाग भी जल्दी आ गया। अगला भाग श्रीराम नवमी के पहले प्रकाशित हो जाएगा।🙏😊


                                                    अमन मिश्रा
                                                          🙏

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1 Comments

Shaba

05-Jul-2021 03:17 PM

कहानी ने तो अब पूरी रफ्तार पकड़ ली है। हमारी चौकड़ी भी पूरे एक्शन मोड में आ गई है। आपकी लेखनी शैली हर भाग के साथ रोमांच को बढ़ा रही है। सरल शब्दों का प्रयोग आपकी कहानी को और भी ग्राह्य बना रहा है। बधाईयाॅ॑।

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